Friday, May 31, 2019

رولا الطبش: جدل بسبب شرب النائبة اللبنانية السنية القهوة في نهار رمضان

وظهرت الطبش، أمام وسائل الإعلام أثناء تقديم العزاء برحيل البطريرك مار نصرالله بطرس صفير من الصرح البطريركي في بكركي (البطريركية الانطاكية السريانية المارونية) وهي تشرب القهوة في نهار رمضان.
وانتشرت صورة النائبة بشكل كبير عبر مواقع التواصل الاجتماعي في لبنان، واختلفت وجهات النظر والآراء حولها.
واعتبر عدد من مستخدمي مواقع التواصل أن من واجب النائبة، التي تمثل الطائفة السنية في البرلمان اللبناني، أن تحترم حرمة شهر رمضان بغض النظر من موقفها من الصيام.
فقال وسام الديك: "رولا الطبش انتخبت عن المقعد السني بالبرلمان وليس عن المقعد العلماني. صحيح هي حرة أن تصوم أو أن تفطر ولكن يجب عليها أن تستتر كما أمر الله وأن تحترم حرمة هالشهر والناس التي أوصلتها إلى البرلمان والناس اللي عّم ينتقدوا لهم الحق أن ينتقدوا لم نكون ببلد علماني مش ببلد طائفي".
وفي رد على تغريدة مدافعة عن الطبش، قال عادل عبد الكريم مراد: "هلق ربنا سبحانه وتعالى لم يفرض قصاص دنيوي على من لا يصوم ولكن مثل ما بتعرفي عنا في لبنان نظام طائفي وهذه الطبش تمثل طائفة معينة في البرلمان بقى كان لازم تحترم مشاعر الناس يلي بتمثلهم ولكن إذا ما احترمت أمر ربها سبحانه بدها تحترم أهل السنة التي تمثلهم في البرلمان".
وخلص وسام إلى القول: "للأسف أصبح اختيار آل الحريري للمرشحين خاطئ على عكس سياسة الحريري الأب. بالأمس أخطاء من ديما جمالي واليوم رولا الطبش. نحن مع تمثيل المرأة بدون أدنى شك ولكن هناك سيدات سنية موزونة ومرموقة. هذه الممارسات تدل على انتهاء السياسة الحريرية وحبه من شارعه".
وفي المقابل رفض آخرون الحملة التي تعرضت لها النائبة رولا الطبش، فقالت الإعلامية اللبنانية ديما صادق على حسابها على تويتر: "بدك تحاسب النائب اللي انتخبته حاسبه على أدائه التشريعي، على إذا نفذ وعوده الانتخابية. حياته وطقوسه الشخصية ما حدا اله معها! وإذا أنت منتخبها لتطبيق شريعة السنة فكنت ما تنتخبها من الأول لإنها مش محجبة، مش الحجاب فريضة؟ الدين شأن خاص! كل التضامن مع رولا الطبش".
وقالت فاطمة أرجا: "لما الشعب بيعرف يحاسب المسؤول عن مشاريعه الإنمائية بس وقتا منقدر نبني بلد، خلصونا من هالجدل البزنطي لأن ما حدا بيتحاسب عن حدا كل إنسان دينه لنفسه، للتذكير، إنتخبتوها لتمثلكن سياسيا وليس دينيا".
ولم تكن هذه المرة الأولى التي تثير فيها النائبة رولا الطبش الجدل عبر مواقع التواصل الاجتماعي في لبنان.
فقد تعرضت الطبش في وقت سابق لانتقادات واسعة بعد مشاركتها في طقس مسيحي أثناء حضورها قداسا للمحبة والسلام في بيروت.
ولم يكن دخول جارودي الكنيسة ما أثار غضب الناشطين عبر مواقع التواصل في ذلك الوقت، والذين رأوا أنّ من الطبيعي مشاركة المسلمين للمسيحيين في مناسبات اجتماعيّة، ومشاركة المسيحيين للمسلمين في مناسباتهم الخاصة.
لكنّ الأمر المفاجئ بالنسبة لهم هو تقدم الطبش إلى الكاهن، لكن الكاهن لم يناولها القربان بل اكتفى بوضع الكأس على رأسها، علمًا أنّ هذا الأمر من الطقوس التي يتبعها المسيحيون حصرًا
حجبت السلطات المصرية بعض مواقع الإنترنت التي كانت تعرض مسلسلات رمضان الجديدة هذا العام، وتنتهك حقوق الملكية الفكرية الخاصة بالمنتجين، وذلك بعد أيام من إطلاق تطبيق إلكتروني لمشاهدة الأعمال الدرامية الرمضانية بمقابل مادي يتحدد حسب باقة الاشتراك التي تصل إلى ألف جنيه مصري.
وكان موقع "إيجي بست"، الذي يحتوي على مكتبة كبيرة من الأفلام الأجنبية المترجمة إلى العربية ومسلسلات من عدة دول بعضها ناطق بالعربية والبعض الآخر "مدبلج"، من أبرز تلك المواقع التي حجبت في مصر لانتهاك حقوق الملكية الفكرية الخاصة بالشركات المنتجة لأعمال رمضان التلفزيونية.
وأثار حجب هذا الموقع حالة من الجدل بين مستخدمي مواقع التواصل الاجتماعي الذين يرى بعضهم أن في الحجب "حرمان" لهم من مشاهدة الأعمال الدرامية في رمضان في الأوقات التي يفضلونها، بينما يرى البعض الآخر أن تلك خطوة في الاتجاه الصحيح لحماية حقوق الملكية الفكرية للشركات المنتجة لهذه الأعمال.
"الفن لا يمكن حصاره"
يقول محمود عزت، ممثل ومخرج مصري، لبي بي سي: "حجب المواقع التي تعرض المسلسلات الدرامية عن المستخدمين وعرضها حصريا مقابل مبالغ من المال هي فكرة تجارية ليس لها علاقة بالفن".
ويرى عزت أن "فكرة الحجب سوف تكون سببا لظهور المزيد من القراصنة الإلكترونيين كل يوم، الذين بإمكانهم أن يتجاوزوا الحقوق الحصرية. كما أن الاتجاه إلى شراء منتج إعلامي أو فني بمقابل مادي لا يزال ضعيفا في مصر والمنطقة العربية".
وفي المقابل، كان لطارق الجنايني، منتج مصري، رأي مختلف، إذ يعتقد أن عرض المنتج الفني، سواء كان عملا سينمائيا أو دراميا، أو غير ذلك، دون امتلاك الحق القانوني لعرضه يعد "سرقة وإضرارا بمصالح المنتجين"، حسبما قال لبي بي سي.
ويصب قرار حجب تلك المواقع في صالح شركات الإنتاج الفني التي من خلاله تضمن عرضا حصريا للمسلسلات يقتصر على من يشتري حقوق البث، من قنوات فضائية، أو مستخدمي التطبيقات الإلكترونية التي بدأت في الظهور بالفعل لتوفر مشاهدة مدفوعة الأجر للجمهور.
ويرى عزت أن هذا الإجراء يحرم قطاعا كبيرا من مشاهدة دراما رمضان، يتمثل في فئة الشباب الذين ينشغلون بأعمالهم أو أنشطة حياتهم اليومية، ويفضلون مشاهدة تلك الأعمال على الإنترنت في الأوقات التي تناسبهم، وأطلقت الشركة المتحدة المملوكة لمجموعة "إعلام المصريين" تطبيق "وتش إت" لمشاهدة المسلسلات الرمضانية مقابل سداد مبالغ مالية تختلف حسب باقة الاشتراك. وتقول الشركة إن التطبيق يستهدف التصدي لسرقة حقوق الملكية الفكرية للأعمال الفنية.
ورغم هذا الحرص على التصدي لسرقة حقوق الملكية الفكرية من جانب الشركة صاحبة التطبيق، تعرض ذلك التطبيق لاختراق من قبل قراصنة إلكترونيين في الأيام الأولى من إطلاقه على متجر تطبيقات "غوغل بلاي" ومتجر تطبيقات أبل.
ويقول طارق الجنايني: "أعتبر خبر حجب تلك المواقع خبرا سعيدا لأنها مواقع تسرق أعمالنا وتعرضها لصالحها دون أن تشتري حقوق البث أو حقوق الملكية الفكرية. وأصابتني الدهشة عندما رأيت البعض يعربون عن استيائهم من القرار الذي يحمي مصالحنا كمنتجين".
وأضاف: "لابد أن تتغير ثقافة المشاهدة المجانية في الوقت الذي يتناسب مع المشاهد لأن هذه سرقة بكل ما تعنيه الكلمة من معنى. فمن لا يستطيع شراء حقوق البث أو المشاهدة عليه أن يبحث عما هو متوافر وفقا لإمكاناته المالية، ولديه البث التلفزيوني المجاني بما يتضمنه من إعلانات هي التي توفر لنا الاحتياجات التمويلية اللازمة لإنتاج المزيد من الأعمال".

Wednesday, May 22, 2019

बिहार की वो सीट जहां एनडीए के 'असली-नकली' उम्मीदवार हैं आमने-सामने

बिहार में यूँ तो इस बार के आम चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है लेकिन बांका लोकसभा सीट उन चंद सीटों में से है, जहां मुक़ाबला त्रिकोणीय है.
बांका में निर्दलीय प्रत्याशी और पूर्व सांसद पुतुल कुमारी के चुनाव मैदान में आ जाने से ऐसा हुआ है.
सबसे दिलचस्प बात यह कि जेडी (यू) प्रत्याशी विधायक गिरिधारी यादव जहाँ एक ओर एनडीए के घोषित उम्मीदवार हैं तो वहीं पुतुल कुमारी खुद को 'एनडीए का असली कैंडिडेट' बता रही हैं.
दोनों उम्मीदवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं. यहां से महागठबंधन ने राजद प्रत्याशी और सांसद जयप्रकाश नारायण यादव को फिर से टिकट दिया है.
इस बार चुनाव मैदान में उतरे तीनों ही प्रत्याशी बांका से सांसद रह चुके हैं. बीते लोकसभा चुनाव में पुतुल कुमारी दस हजार मतों के अंतर से जयप्रकाश नारायण यादव से हारी थीं.
बिहार एनडीए में हुए सीट शेयरिंग में बांका की सीट जदयू के खाते में गई और इस तरह 2014 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाली पुतुल कुमारी बेटिकट हो गईं.
इसके बाद पुतुल ने निर्दलीय प्रत्याशी बनने के फैसला किया. वो कहती हैं, "निर्दलीय लड़ने के लिए हमलोग बिल्कुल भी तैयार नहीं थे. स्थितियाँ ऐसी बनी कि ये फैसला लेना पड़ा. पार्टी (भाजपा) का दवाब था कि मैं चुनाव न लडूं क्योंकि यहाँ से गठबंधन के प्रत्याशी मैदान में हैं. ऐसे में पार्टी को असहज स्थिति से बचाने के लिए मैंने इस्तीफ़ा दे दिया."
"लोगों में इस बात का आक्रोश है कि इनके साथ ग़लत हुआ है. सब लोगों को लगता था कि एनडीए की कैंडिडेट मैं ही हो सकती थी और अब सहज तौर से लोग मुझे ही एनडीए का कैंडिडेट मान रहे हैं. लोगों में कहीं कोई कन्फ्यूज़न नहीं है. सब कह रहे हैं कि हम असली उम्मीदवार को समर्थन दे रहे हैं."
अगर आप खुद को एनडीए का असली कैंडिडेट बता रही हैं तो क्या आप सर्जिकल स्ट्राइक और नरेन्द्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यों के आधार पर समर्थन भी मांग रही हैं?
इस सवाल के जवाब में पुतुल कहती हैं, "दुनिया जानती है कि वे मज़बूत प्रधानमंत्री हैं. हमने लोगों के बीच उज्ज्वला चूल्हा शिविर लगा लगा कर बंटवाया था. मेरा चुनाव चिन्ह भी गैस सिलिंडर है."
क्या जीतने के बाद उनका समर्थन नरेंद्र मोदी को मिलेगा, इस सवाल के जवाब में पहले तो उन्होंने छूटते हुए कहा कि बिल्कुल हम समर्थन देंगे. मगर फिर उन्होंने अपने जवाब बदलते हुए कहा कि ये बाद की कहानी है और काउंटिंग होने के बाद ही इस पर बात होगी.
कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली अंतरराष्ट्रीय शूटर और अर्जुन पुरस्कार प्राप्त श्रेयसी सिंह पुतुल कुमारी की छोटी बेटी हैं. वह बीते कुछ हफ़्तों से लगातार अपनी मां के लिए चुनाव प्रचार कर रही हैं.
नरेन्द्र मोदी के समर्थन से जुड़े सवाल का जवाब वह अपनी मां के मुकाबले ज्यादा खुल कर देती हैं. उन्होंने कहा, "भाजपा का संगठन खड़ा करने में सत्तर फीसदी भूमिका पुतुल कुमारी की है."
"इस कारण भाजपा के बहुत सारे लोग यह सीट जदयू को दिए जाने के कारण खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं और वो पुतुल कुमारी को सपोर्ट कर भाजपा का समर्थन कर रहे हैं. और उन्हें यकीन है कि प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन की बात पर हम भाजपा में वापस लौट जायेंगे."
एनडीए के 'असली' कैंडिडेट होने के अपने-अपने दावों के बीच गिरिधारी यादव और पुतुल कुमारी के बीच एक और दावा चुनाव प्रचार से जुड़े पैरोडी गानों में भी दिखाई देता है.
दोनों उम्मीदवारों ने हाल के दिनों में मशहूर हुए 'ठीक है' गाने की तर्ज़ पर अपने-अपने प्रचार गीत तैयार करवाए हैं. दोनों ही उम्मीदवार इस गाने के ज़रिए अपनी उम्मीदवारी जता रहे हैं.
पुतुल कुमारी के प्रचार गीत के बोल कुछ इस तरह से हैं, "गैस सिलिंडर छाप पर हमलोग बटन दबाएंगे... ठीक है... पुतुल कुमारी को ही इस बार हमलोग एमपी बनाएंगे.... ठीक है.."
वहीं गिरधारी यादव कुछ इस अंदाज़ में समर्थन मांग रहे हैं, "हाथ से हाथ मिला के अपने कदम को आगे बढ़ाएंगे... ठीक है... तीर छाप पर बटन दबाएंगे गिरधारी जी को जदयू प्रत्याशी गिरिधारी यादव प्रधानमंत्री की सफल विदेश और रक्षा नीति और उनके गरीबी मिटने के कार्यों के आधार पर जनता से एक बार फिर से अपने लिए समर्थन मांग रहे हैं.
हाल के वर्षों में बेरोजगारी बढ़ने की बात कहकर विपक्ष नरेंद्र मोदी सरकार से सवाल करता रहता है. इस संबंध में गिरधारी यादव कहते हैं, "जब तक आबादी पर नियंत्रण नहीं होगा इस देश में बेरोजगारी की समस्या रहेगी. इस मसले पर सारे दलों को मिलकर काम करना चाहिए."
जबकि एनडीए का 'असली' कैंडिडेट होने के दावों पर उन्होंने कहा, "नरेंद्र मोदी जी का कोई कैसे तीसरा आदमी हो जायेगा. जो अधिकृत है वही न एनडीए का उम्मीदवार होगा. उनको (पुतुल कुमारी) तो तेजस्वी कैंडिडेट बना रहे हैं. जब तेजस्वी जी भाषण में कहते हैं कि एनडीए की कैंडिडेट पुतुल कुमारी हैं और पुतुल कुमारी कहती हैं कि हमारी लड़ाई राजद से है तो इस बात से ही साफ़ समझ आ जाता है कि यह दोनों के बीच की मिलीकुश्ती है."
"तेजस्वी अपना टिकट ठीक से बाँट नहीं पाए और वे बांका की सभाओं में एनडीए का टिकट बाँट रहे हैं. हमारी लड़ाई किसी से नहीं है. जीत का मार्जिन बहुत बड़ा होगा. उन दोनों के बीच दूसरे और तीसरे नंबर के बीच की लड़ाई है."
वहीं राजद प्रत्याशी और वर्तमान सांसद जयप्रकाश नारायण यादव का कहना है, "इस बार दो एनडीए उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है और इस कारण मुकाबला करने वाला अपने में टकरा कर बर्बाद हो रहा है."
हालाँकि वे पुतुल कुमारी को ही असली एनडीए उम्मीदवार मानते हैं. उन्होंने कहा, "जिनको एनडीए का सिंबल नहीं मिला है वो असली है. एनडीए का बेस वोट जो एनडीए नहीं है वहां चला गया. रियल एनडीए अब डमी बन गए हैं क्योंकि उनका बेस वोट तो है नहीं."

Friday, May 17, 2019

الإجهاض: تعرف على الدولة التي تزيد فيها معدلاته على الإنجاب

تقول بيا، البالغة من العمر 19 عاما من غرينلاند ، لبي بي سي: "لا أفكر في الأمر مرتين. نحن نتحدث عن الإجهاض علنا، وأتذكر عندما أخبرت جميع أصدقائي وعائلتي بآخر مرة أجريت فيها عملية إجهاض".
أجرت بيا خمس عمليات إجهاض خلال العامين الماضيين.
وتضيف الفتاة، وهي من مدينة نوك، عاصمة غرينلاند : "عادة استخدم وسائل حماية (من الإنجاب)، وأحيانا ننسى استخدامها. أنا لا أستطيع أن أنجب طفلا الآن، فأنا في عامي الدراسي النهائي في المدرسة".
ليست بيا الوحيدة في هذا الأمر، إذ تشير إحصاءات رسمية إلى أنه منذ عام 2013 سُجلت نحو 700 حالة ولادة و 800 عملية إجهاض سنويا.
لماذا تسجل غرينلاند مثل هذه المعدلات المرتفعة لحالات الإجهاض؟
على الرغم من أن غرينلاند تعد أكبر جزيرة في العالم، إلا أنه لا يسكنها سوى عدد قليل من السكان، فقط نحو 56 ألف نسمة، في أول يناير / كانون الثاني 2019، بحسب احصاءات رسمية.
وتجهض أكثر من نصف السيدات حملهن، أي بمعدل نحو 30 عملية إجهاض لكل ألف سيدة.
وتشير إحصاءات رسمية إلى أنه بالمقارنة، تسجل الدنمارك معدل إجهاض بواقع 12 حالة لكل ألف سيدة.
وعلى الرغم من تمتع غرينلاند رسميا بحكم ذاتي، فهي لا تزال إقليما تابعا للدنمارك.
وبينما تسهم الصعوبات الاقتصادية والظروف السكنية السيئة ونقص التعليم في ارتفاع معدلات الإجهاض، فهي لا تفسر كل شيء في دولة مثل غرينلاند التي تتيح وسائل منع الحمل بالمجان فضلا عن سهولة الحصول عليها.
ويظل الإجهاض في كثير من الدول، حتى عندما يكون قانونيا وبحرية، اختيارا موصوما.
ولا تشعر بعض السيدات بقلق في غرينلاند، إذ لا يعتبرن أن الحمل غير المرغوب فيه من الأشياء التي تستوجب الحرج.
تقول بيا : "أجرت معظم صديقاتي عمليات إجهاض. كما أجرت أمي ثلاث عمليات إجهاض قبل أن تلدني أنا وأخي، إنها لا تحب الحديث بشأن ذلك."
وتقول توري هيرماندسدوتير، باحثة دكتوراه تدرس موضوع الإجهاض في جامعة روسكيلد في الدنمارك : "تستطيع الطالبات في مدينة نوك الذهاب إلى عيادة الصحة الجنسية يوم الأربعاء، وهو اليوم الذي يعرف باسم (يوم الإجهاض)".
وتضيف : "لا يبدو أن النقاش بشأن الإجهاض في غرينلاند يخضع لمحرمات أو استياء أخلاقي، وكذلك الجنس قبل الزواج أو الحمل غير المخطط له".
تقول بيا : "وسائل منع الحمل مجانية وسهل الحصول عليها، لكن الكثير من صديقاتي لا يستخدمنها".
وتقول ستين برينو، ممرضة متخصصة في أمراض النساء في غرينلاند وترصد حالات الإجهاض منذ سنوات، لبي بي سي : "ق نحو 50 في المئة من سيدات شملهن استطلاع رأي قلن إنهن يعرفن وسائل منع الحمل، لكن أكثر من 85 في المئة لم يستخدمنها أو استخدمنها بشكل غير صحيح".
وأضافت أن حالات الحمل غير المرغوب فيه قد تحدث بسبب استهلاك الكحول : "إذ ينسى الرجل والمرأة استخدام وسائل منع الحمل تحت تأثير الشراب".
وتقول هيرماندسدوتير، وفقا لبحثها، إنه توجد ثلاثة أسباب وراء عدم استخدام السيدات وسائل منع الحمل في غرينلاند.
وتضيف : "(أولا) السيدات اللواتي يرغبن في طفل، (ثانيا) السيدات اللواتي تتعرض حياتهن لاضطرابات تحت تأثير العنف والكحول قد ينسين تناول حبوب منع الحمل، و(أخيرا) إذا رفض الشريك استخدام الواقي الذكري".
قد تقرر سيدة إجهاض حملها إن حدث بسبب اغتصاب، أو عندما لا ترغب في إنجاب طفل في منزل يشوبه الاضطراب.
ويقول لارس موسغارد، طبيب محلي من بلدة صغيرة في جنوب غرينلاند : "قد يكون الإجهاض أفضل من إنجاب أطفال يواجهون الإهمال وعدم الرغبة فيهم."
ويشير مركز الشمال الأوروبي للرعاية والقضايا الاجتماعية إلى أن العنف مشكلة صحية متكررة في غرينلاند، إذ تحدث طالب واحد من بين كل 10 طلاب عن تعرض أمهاتهم للعنف.
وبخلاف حوادث العنف، يكون الأطفال أيضا ضحايا.
وقالت ديتي سولبيك، مديرة خطة حكومية لمكافحة الاعتداء الجنسي، لهيئة الإذاعة الدنماركية : "تعرض ثُلث سكان غرينلاند الكبار لشكل من أشكال سوء المعاملة عندما كانوا أطفالا".
على الرغم من أن وسائل منع الحمل مجانية ويمكن الحصول عليها بسهولة، إلا أن ذلك لا يعني بالضرورة استخدامها.
وقالت بيا لبي بي سي : "لم تتحدث أمي معي عن صحتي الجنسية على الإطلاق، اكتشفت بعض الأشياء في المدرسة أغلبها عن طريق صديقاتي".
وأظهرت دراسة أجرتها المجلة الدولية للصحة في المناطق المحيطة بالقطب أن الأسر في غرينلاند تؤجل أو تتجنب الحديث عن الصحة الجنسية لأنها تعتبر ذلك من الموضوعات المحرجة والصعبة.
تسجل غرينلاند، بالإضافة إلى ارتفاع معدلات الإجهاض بها، معدلات انتحار مرتفعة على نحو خاص، بواقع 83 حالة انتحار لكل 100 ألف شخص سنويا، وفقا لبيانات المجلة الدولية للصحة في المناطق المحيطة بالقطب، يمثل الشباب أكثر من نصف عدد حالات الانتحار في غرينلاند.
ويقول لارس بيدرسن، عالم نفس قضى سنوات في غرينلاند : "في معظم الحالات، يكون أولئك الذين نشأوا في بيئة تتسم بسوء المعاملة والعنف هم الفئة الأكثر عرضة للانتحار".
أصبحت غرينلاند جزءا من المملكة الدنماركية في عام 1953، كما أصبحت اللغة الدنماركية لغة رسمية، وتغير المجتمع والاقتصاد بشدة.
واضطر "الإنويت"، أو شعب الإسكيمو وهم السكان الأصليون في غرينلاند ويشكلون 88 في المئة من السكان، إلى إيجاد طرق تكفل التكيف مع مجتمع حديث والحفاظ على تراثهم الثقافي.
وقال بيدرسن: "انتقلت غرينلاند من مجتمع الإنويت التقليدي، إلى الحياة العصرية. وزاد استهلاك الكحول الذي عزز العنف والاعتداء الجنسي."
وأضاف : "معظم الناس يعرفون شخصا ما انتحر".
اقترح البعض ضرورة أن تبدأ غرينلاند فرض رسوم على كل عملية إجهاض من أجل خفض المعدل.
وقال آخرون إن السيدات اللواتي يجرين عمليات إجهاض لا علاقة لهن بحقيقة كون عمليات الإجهاض مجانية ويمكن الوصول إليها بسهولة.
وتعد الأرقام في الدنمارك، التي يسهل فيها أيضا إجراء عمليات إجهاض و"بسهولة"، أقل بكثير (12 حالة لكل ألف سيدة).
كانت الطبيبة النرويجية يوهان سوندبي قد عملت في غرينلاند سابقا مع سيدات وأطفال يتعافون من العنف وسوء المعاملة.
وتقول بشأن دفع المرضى تكاليف إجراء العملية : "أنا ضده تماما. إنه سيفتح سوقا غير خاضع للتنظيمات به عمليات إجهاض رخيصة وخطيرة."