Monday, September 17, 2018

उत्तर कोरिया में घुसपैठ करने वाला जेम्स बॉन्ड

ये कहानी दक्षिण कोरिया के उस जेम्स बॉन्ड की है जिसने सबसे पहले ये पता लगाया था कि उत्तर कोरिया ने दो परमाणु हथियार विकसित कर लिए हैं.
दक्षिण कोरियाई सेना के अफ़सर और ख़ुफ़िया अभियानों को अंजाम देने में माहिर पार्क चेइ सियो को उत्तर कोरिया के इन परमाणु हथियारों का पता 1992 में लग गया था.
हालांकि ये परमाणु हथियार कम क्षमता वाले थे और उस वक्त पार्क चेइ सियो ने अमरीकी एजेंसी सीआईए के साथ मिलकर काम किया था.
दक्षिण कोरियाई सेना का ये ख़ुफ़िया मिशन अपने पड़ोसी देश की परमाणु क्षमता के बारे में सुराग जुटाना था.
पार्क चेइ सियो और दूसरे ख़ुफ़िया अफ़सर इस मिशन पर साल 1990 से ही काम कर रहे थे.
इसके साल भर पहले ही उत्तर कोरिया के योंगब्यॉन कॉम्प्लेक्स में एक परमाणु संयंत्र की सैटेलाइट से ली गई तस्वीरें पहली बार सामने आई थीं.
पार्क ने इसके लिए न्यूक्लियर एनर्जी के प्रोफ़ेसर से संपर्क साधा. उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी देने के लिए पार्क ने इन प्रोफ़ेसर को मनाया.
इस तरह से उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों की जानकारी हासिल करने में पार्क कामयाब रहे और दक्षिण कोरिया की खुफिया एजेंसी नेशनल इंटेलीजेंस सर्विस उनकी प्रतिभा की कायल हो गई.
साल 1995 में उत्तर कोरिया में घुसपैठ कर जासूसी करने के लिए पार्क चेइ सियो को ख़ास तौर पर चुना गया.
चीन की राजधानी बीजिंग में पार्क ने खुद को मिलिट्री कमांडर से बिजनेसमैन बने शख़्स के तौर पर पेश किया.
बीबीसी को हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में पार्क ने बताया, "इस मिशन का मक़सद दुश्मन के दिल तक पहुंचाना था."
"मैं वहां तक पहुंचने में कामयाब रहा, जहां तक कोई दक्षिण कोरियाई जासूस कभी नहीं पहुंच पाया था. मैं किम जोंग उन के पिता किम जोंग इल से भी मिला."
उत्तर कोरिया में दाखिल होते वक्त कैसा महसूस होता था? इस सवाल पर पार्क बताते हैं, "जब भी आप उत्तर कोरिया में दाखिल होते हैं, आप का सब कुछ दांव पर होता है."
"आप कभी भी बेनकाब हो सकते हैं और आपका सिर किसी वक्त कलम किया जा सकता है."
पार्क पर बनी फिल्म 'द स्पाई गोन नॉर्थ' को केन्स फिल्म फेस्टिवल में इसी मई में सम्मानित किया गया और अगस्त में दक्षिण कोरिया के सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई है.द स्पाई गोन नॉर्थ' का प्रीमियर भी ऐसे वक्त में हुआ जब उत्तर कोरिया का परमाणु संकट एक नए दौर में दाखिल हो रहा था और जून के महीने में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन सिंगापुर में मिल रहे थे.
इस मुलाकात में किम जोंग उन ने उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम बंद करने की बात कही थी.
लेकिन पार्क चेइ सियो कहते हैं, "उत्तर कोरिया के बारे में कोई जानकारी जुटाने के लिए सबसे पहले तो वहां आने-जाने की आज़ादी होनी चाहिए."
"सबसे पहले तो उत्तर कोरिया से इसी आज़ादी की गारंटी मांगी जानी चाहिए."
पार्क ने बताया कि उन्हें खुद को ऐसे आला दर्जे के शख़्स के तौर पर स्थापित करना पड़ा जिससे उत्तर कोरिया की सरकार के बड़े अधिकारी मिलना चाहें.
दक्षिण कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति किम योंग साम के करीबी लोगों से उन्हें इस सिलसिले में मदद मिली.
और पार्क उनके जरिए उत्तर कोरिया के पावर सर्किल के रसूखदार जांग सेयोंग थाएक के करीब आए. जांग सेयोंग थाएक किम जोंग-उन के चाचा भी थे. साल 2013 में किम जोंग उन ने जांग सेयोंग थाएक की हत्या करवा दी.र्क बताते हैं कि किम जोंग इल के अलावा उत्तर कोरियाई निज़ाम के आला अफसरों में जांग सेयोंग थाएक से उनकी मुलाकात हुई. ये दोनों बीजिंग अक्सर जाया करते थे.
लेकिन किसी से मुलाकात कर लेना एक बात होती है और उसका भरोसा हासिल करना दूसरी बात.
"जब उत्तर कोरियाई अधिकारी ये तय कर लेते हैं कि उन्हें किसी के साथ काम करना है तो फिर उस शख़्स को इस कम्युनिस्ट देश के लिए वफादारी की शपथ लेनी पड़ती है."
"आपसे एक दस्तावेज़ पर दस्तखत कराए जाते हैं लेकिन मैं उन्हें इनकार करता रहा. मैंने उन्हें कहा कि ऐसा करने के लिए मुझे मजबूर मत करो."
"मैंने उन्हें कहा कि मैं यहां सिर्फ़ बिज़नेस करने के लिए आया हूं. उन्होंने मेरी तरफ़ बंदूक तान दी थी लेकिन मैंने चांस लिया और उन पर चिल्लाने लगा."
'द स्पाई गोन नॉर्थ' के एक अहम दृश्य में ये दिखाया गया है कि पार्क को किम जोंग इल से मिलते हुए दिखाया गया है. फिल्म में किम जोंग इल अपने पालतू कुत्ते के साथ गेस्ट रूम की तरफ़ बढ़ते हुए दिख रहे हैं.
पार्क बताते हैं कि हकीकत तो ये थी कि मेरी पूरी जांच पड़ताल खत्म होने के बाद ही मुझे किम जोंग इल के पास ले जाया गया था.
किम जोंग इल से मुलाकात के दौरान पार्क चेइ सियो ने खुद को एक दक्षिण कोरियाई एडवर्टाइज़िंग कंपनी के अधिकारी के तौर पर पेश किया जो दोनों कोरियाई देशों के लिए एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था.
उत्तर कोरिया के अधिकारियों ने पार्क चेइ सियो को किम जोंग इल से इसलिए मिलवाया था ताकि वो उन्हें एडवर्टाइजिंग का कॉन्सेप्ट समझा सकें और अपने प्रोजेक्ट के लिए मना सकें.
पार्क याद करते हैं, "एडवर्टाइजिंग को पूंजीवाद का गहना माना जाता है लेकिन एक साम्यवादी देश को पब्लिसिटी का आइडिया कैसे बेचा जा सकता था. ये आसान नहीं था. और अपने एडवर्टाइज़िंग कैम्पेन को आगे बढ़ाने के लिए मुझे किम जोंग इल के सबसे उच्च स्तर से इजाजत लेनी थी."
पार्क ने बताया कि किम जोंग इल बेहद सौम्य और सलीकेदार शख्सियत थे. "वे पक्के इरादे वाले शख्स थे जिसमें फैसले करने का माद्दा था. वे अपना कहा एक शब्द भी नहीं दोहराते थे. उनकी बातें बिना किसी लाग लपेट के स्पष्ट होती थीं."

Friday, September 14, 2018

联合国呼吁立刻对气候变化采取行动

联合国气候变化框架公约执行秘书伊沃•德布尔警告称, 如果12月在印度尼西亚巴厘岛举行的国际气候会议上不达成协议,世界就会深陷“麻烦”之中。
德布尔说,在对抗气候变化方面,政府没有做好必要的准备工作。

德布尔在石油输出国家组织峰会期间说,"目前从科学界所提供的信息,说明如果巴厘岛国际气候会议有任何差错,我们将有大的“麻烦”。

他补充道,不应该有石油战争。所有能源的应用须合理来符合经济发展和减少碳排放目标的要求。
中国国家环保总局一位负责人今天透露,12家重污染企业因为上了国家环保总局递交给银监会和人民银行的黑名单,已经被各家银行追缴、停止或拒绝贷款。
安徽的一家酿酒企业本来要向当地银行申请1000万元的贷款,但银行在上报时查询发现这家企业因为多年来没有污水处理设施、生产污水直接排放而上了环保部门的黑名单,于是迅速叫停了这笔贷款。

国家环保总局负责人说,绿色信贷已经显现的作用是逼迫企业必须为环境违法行为承担经济损失。现行法律允许环保部门对污染企业罚款的额度只有10万元,这样的处罚与企业偷排结余的成本相比是杯水车薪,而绿色信贷在某种程度上丰富了环保部门的执法手段。

据介绍,目前绿色信贷已经是国际潮流,截至2006年11月,包括花旗、渣打、汇丰在内的至少43家大型跨国银行明确实行“赤道原则”,在贷款和项目资助中强调企业的环境和社会责任。世界银行、亚洲开发银行、美国和欧盟的进出口银行都已经把环境因素纳入贷款、投资和风险评估程序。
联合国的一研究报告说,欧洲可加大电子废物的回收,来改变从手机到冰柜等大多数废物被作为垃圾处理的现状。
负责该研究的 说,虽然欧洲经常被看作回收废物的好榜样,但还是有很大的改善空间。

  说,消费者不知道他们需退回电子废物,而且也不知道这些废物的环境影响。

欧洲制造了全球1/4的电子废物。
中国国家环保总局局长周生贤周三说,今年前3 个季度,中国化学需氧量排放比去年同期下降0.28%;二氧化硫排放量比去年同期下降1.81%。
至此,中国公布的两项学术性指标开始出现双双下降,出现拐点。

周生贤说,煤电站安装了更多的脱硫设施石牌坊下降的一主要因素。
一全球电站排放数据库显示,澳大利亚人均电站二氧化碳排放为11吨,为全球最高。美国仅随其后, 为9吨。
虽然中国人均电站二氧化碳排放只有 2吨,但中国电站的二氧化碳排放将在未来10年上升60%。

这一数据库,碳监控行动,收集了全球5万座电站的排放情况。

包括华能国际电力股份有限公司在内的4家中国电力公司,连同美国,德国,南非和印度的公司被列为全球碳排放最高的10家发电企业。

Wednesday, September 12, 2018

अगर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वहां आपके वि

सवालः अगर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वहां आपके विधायकों की संख्या 44 से 5 पर आ गई. वहां आपका जो कैडर है, गांव के गांव बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, इसको कैसे रोकेंगे.
पश्चिम बंगाल में हमारे सामने बहुत ही गंभीर समस्या है. वहां हमारे 200 कॉमरेडों की हत्याएं हुई हैं. ये बिलकुल ग़लत ख़बर है कि गांव के गांव छोड़कर बीजेपी में जा रहे हैं. वहां पर लाखों वामपंथी लोग हैं जो कार्यरत हैं.
सवालः जब आपको दो तिहाई बहु
सवालः कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के बारे में एक ऐसी धारणा है कि वे जनता से सीधा कनेक्ट नहीं कर पाते, जनता की ज़ुबान में नहीं बोलते हैं. जिस तरह नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल या मायावती बात करते हैं उसके मुक़ाबले आपका बात करने का तरीका सेमिनार सरीखा होता है. ऐसी आपकी आलोचना होती है. क्या इस पर कभी चर्चा होती है?
यह एक तरह का दुष्प्रचार है. कुछ दिन पहले दिल्ली में लाखों किसान मज़दूर आए हैं वो किससे प्रोत्साहित होकर आए हैं...
सवालः लेकिन यह समर्थन फिर वोट में तब्दील क्यों नहीं होता?
(हंसते हुए) यह सवाल तो पार्टी के अंदर भी सबसे बड़ा चर्चा का मुद्दा है. देश के अंदर वर्ग संघर्ष दो टांगों पर टिका हुआ है. एक है आपका आर्थिक शोषण दूसरा है सामाजिक शोषण. अब सिर्फ एक टांग को लेकर आर्थिक शोषण को लेकर आप दौड़ने की कोशिश करेंगे तो चल भी नहीं पाएंगे.
जब तक सामाजिक शोषण का जो संघर्ष है, उसे आर्थिक शोषण के संघर्षों के साथ नहीं जोड़ेंगे तो यही विरोधाभाष फ़िलहाल नज़र आता है.
पहले नारा होता था कि जिस भी फ़ैक्ट्री से धुंआ निकलता हुए दिखे तो उसके गेट पर लाल झंडा लहराना चाहिए. अब हमारा कहना है कि यह तो होना ही चाहिए, इसके साथ हर गांव में जिस कुएं से दलितों और पिछड़ों को पानी नहीं पीने देते, उस कुएं के ऊपर भी लाल झंडा नहीं लहराएगा, यह भरोसा नहीं आएगा.
इसी विरोधाभाष को हम भी समझने की कोशिश कर रहे हैं, लोग लाखों की संख्या में संघर्ष करने आते हैं, लाठी खाते हैं, जेल जाते हैं लेकिन जब वोट का समय आता है, तब अपनी सामाजिक समझ के आधार पर बंट जाते हैं.
सवालः पिछले चुनाव में बीजेपी को दलितों के वोट बैंक का 24 प्रतिशत वोट मिलाऔर दलित समाज कम्युनिस्ट पार्टियों को थोड़ा शक़ की निगाह से देखता है. कम्युनिस्ट पार्टियों में कितने दलित और दूसरी जातियों के लोग नेतृत्व करने वाले क़द तक पहुंच पाए?
ये आरोप ग़लत हैं. हालांकि अगर ऊपरी स्तर पर देखें तो दलितों का प्रतिनिधित्व जितना होना चाहिए उतना नहीं है. ये मैं भी मानता हूं, और इसको दुरुस्त करने की ज़रूरत है. वो हमारी प्राथमिकता भी है.
मत मिलता है पश्चिम बंगाल में, उस वक्त आपके मुख्यमंत्री ऑन रिकॉर्ड टेलीविज़न इंटरव्यू में कहते हैं, कैपिटलिज़्म इज़ द ओनली वे आउट(  तो फिर ग़लती कहां हो गई?
इसके बारे में पार्टी ने भी उनकी आलोचना की. ये पार्टी की राय नहीं है. ज़रूर, एक पूंजीवादी व्यवस्था में देश है, और देश का एक हिस्सा बंगाल भी है.
लेकिन उसी पूंजीवादी व्यवस्था के विकल्प में वैकल्पिक नीतियां जो लागू की हैं, वहीं बंगाल में ख़ासियत रही. फिर चाहे भूमि-सुधार की बात हो, पंचायती राज की बात हो. ये सब बातों को छोड़कर सिर्फ़ पूंजीवाद ही एकमात्र समाधान और रास्ता है. इसकी आलोचना पार्टी ने की है.
सवालः भले ही आपको पसंद ना आए, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी दलित पक्ष की पार्टी ये आपने अब कहना शुरू किया है. जब कन्हैया कुमार ने जेएनयू में 'लाल सलाम, जय भीम' कहना शुरू किया तब ये बातें आनी शुरू हुई. लेकिन सवाल यही है कि कम्युनिस्ट पार्टियों में दलितों का नेतृत्व कहां है?
कन्हैया कुमार से पहले भी यह नारा आ रहा था कि 'लाल झंडा-नीला झंडा, जय भीम लाल सलाम'...
सवालः यह तो कांशीराम के उद्भव के बाद की चीज़ है उससे पहले यह नहीं था.
बिलकुल, राजनीति के अंदर यह उसी समय उभर कर आई जब बहुजन समाज पार्टी उभर कर आई और कांशीराम जी ने उसे आगे बढ़ाया, यह बात बिलकुल ठीक है.
लेकिन दलित आंदोलन और वामपंथी आंदोलनों के बीच संबंध की बात आज की नहीं बल्कि बहुत पुरानी है. हां, वामपंथी और दलित नेताओं के बीच मतभेद भी हुए हैं. लेकिन यह कहना कि वामपंथी दलित विरोधी हैं, यह कहना ग़लत है.
सवालः दलित विरोधी नहीं, वामपंथी की छवि दलितपक्षीय नहीं हैं, जैसे बीएसपी सीधे-सीधे दलितों की बात करती है. अब बीजेपी ने भी कई दलित नेताओं के साथ संबंध बनाए और वो सरकार में भी हैं. जबकि आपकी पूरी रवायत से ही दलित ग़ायब हैं?
जो दलित संगठन हैं, जो दलितों की बात करते हैं, वो हमें भी अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित करते हैं, यह बदलाव तो आ रहा है.
सवालः 1925 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया बनी थी और इसी साल राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भी बना था. आरएसएस ने खुद को गांव-गांव तक पहुंचाया, तमाम संगठन हैं जो उनके तहत काम करते हैं. एक ज़माने में कम्युनिस्ट पार्टी के भी ऐसे कुछ सांस्कृतिक संगठन थे जैसे इप्टा था. आख़िर आप लोग कहां रास्ता भटक गए?
आरएसएस और उसका जो राजनीतिक अंग है बीजेपी, वो तभी बहुत ज़्यादा प्रभावी दिखते हैं जब सत्ता में होते हैं. जब ये सत्ता में नहीं होते हैं, जैसे जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे और गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने कहा था कि आरएसएस का सबसे बड़ा संगठन केरल में है, वहां आप देखिए क्या हाल हो रहा है राजनीति में. इस तरह की पार्टियों को सत्ता में रहने का फ़ायदा होता है.
सवालः यूपीए 1 की सरकार के वक्त आपकी पार्टी ने भारत-अमरीका के बीच हुए परमाणु समझौते के मुद्दे पर सरकार से खुद को हटा लिया था, उस फ़ैसले को आप आज कैसे देखते हैं.
यूपीए सरकार को हमने एक न्यूनतम कार्यक्रम के आधार पर समर्थन दिया था, ये मुद्दा उस कार्यक्रम का हिस्सा था ही नहीं. हालांकि बाद में हमारी पार्टी ने भी अपनी गलतियों और कमज़ोरियों को पहचाना. अब वो तो इतिहास का हिस्सा बन गया है.
लोगों को यह लगने लगा कि वामपंथी पार्टी के हटने की वजह से यूपीए सरकार कमज़ोर हो गई.
सवालः प्रकाश करात के नेतृत्व ने पार्टी को बहुत पीछे कर दिया, क्या कभी इस पर मंथन हुआ?
हमारी पार्टी में कभी एक व्यक्ति के ऊपर पूरी ग़लती की ज़िम्मेदारी नहीं डाली जाती. जो भी निर्णय होते हैं वह सामूहिक तौर पर लिए जाते हैं. जो भी निर्णय ग़लत होते हैं तो सामूहिक रूप से ही कहा जाता है कि यह ग़लत हो गया.
यूपीए 1 से समर्थन वापस लेने वाला ही उदाहरण है तो उसमें हमने पाया की सात जगह हमसे ग़लती हुई.